हम भी आज उतरकर देखें।
गहरा है क्या समंदर देखें॥
बर्बाद होकर आबाद किया,
इस दिल ने कई बंजर देखे॥
आप गुलदस्ता लेने से पहले,
टटोलकर ज़रा खंजर देखें॥
जो चाहिए फूलों का बिस्तर,
काँटों की राह चलकर देखें॥
मैं लाख बुरा हूँ मानता हूँ,
आप अपने भी अंदर देखें॥
जो कहते हैं मैं रोता नहीं,
तकिया मेरा आकर देखें॥
कलम को क्या हासिल है
चल 'गज़ब' मरकर देखें...-
"देखे थे जो कभी सपने
अब अश्क बनकर दफन हो गये दिल के किसी कोने में "।
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ख़्वाब देखे हैं बरे,
मगर उड़ना नहीं जानता,
देखता हूँ अम्बर को मगर,
खुद की पहचान नही जानता,
कैसे जाऊंगा मंजिल की ओर,
किनारा तो दिखता है, मगर रास्ता नही जानता।।-
मजमा घर के अंदर देखें,
आओ छत पे बंदर देखें,
टँकी पे भूवरी का जलवा,
मोटका चाभ रहा है हलवा,
डिश एंटीना पे छुटकन के बलवा,
रोबीला है सिकंदर देखें..!
मजमा घर के अंदर देखें,
आओ छत...
सिद्धार्थ मिश्र-
इंसान अपने कर्म धैर्य और वाणी
से पहचाना जाता है
जिस कर्म धैर्य और वाणी
को देखकर आप प्रभावित होते हो
क्या आपमें निहित है
क्या आप इस पर कभी विचार
करते हो
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हम जी भरके देखें तुम्हें
अगर तुमको गंवारा हो
बेताब मेरी नज़रें हो और
वो चेहरा बस तुम्हारा हो
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तरसी हुई निगाहें फरियाद कर रहीं हैं
किसीको देखें, एक अरसा हो गया हैं-
दूरियों का सबब हमने भी देखें है कई मगर,
फासला कहां तय करती है मुहब्बत का मुकाम।।-
क़रीब से देखें हैं मैंने, कुछ आलम जमाने में
बहुत जल्दी पलटते हैं लोग रिश्तें निभाने में-