तुम्हें गए हुए अभी दो ही दिन हुए हैं मगर ऐसा लग रहा है जैसे मुद्दत हुई है तुमसे मिले ।।। जाने लोग कैसे अपनो से मुँह फेर लेते हैं की सालो बीत जाते हैं एक दूसरे से बात किये।।। हमसे तो तुम्हारी दूरी तक ना बर्दाश हुई कैसे मन को तस्सली दूँ सब सच जानते हुए।।।
दूरियां तो पहले से थी साहब कम होकर दो गज हुई तो अच्छा है। मुँह छिपाते फिरते हो क्यो अपनो से मास्क लगा लो तो अच्छा है।। यू तो जिन्दगी ने कैद कर रक्खा था सबको पहले से। बन्द घरो में हम खुद से रुबरू हुए तो अच्छा है।। हो चुकी आलोचना बहुत अब चाटूकारो तुम्हारी। छोड़ सब मानवता निभाओ यदि इंसान तू सच्चा है।।