जब कोई नहीं होता, तो हम खुद से ही सवाल करते है l फिर उनके जवाबों के लिए, हम खुद से ही लड़ते-झगड़ते है l ज़िन्दगी में दीवार से खिड़की तक, खिड़की से दरवाज़े तक l सब बात करते है, जब वो नहीं होते है l जिनसे हमको बात करनी होती है ll
अब बस तन्हा आंहे भरते हैं किससे करें गुफ्तगू हम यहाँ हमारे तो रो रो कर रातें कटते हैं राज़ी नही कोई हमारा दर्द जानने को सारे बस अपनी ही बातें करते हैं प्यार न बाँट सकें तो न सही कयूँ ये आपस में नफ़रत भरते हैं||
यादों का मंजर भी खूब था किसी के लफ़्ज़ों का खंजर भी खूब था क्यों किसी को यूँहीं गुलाब देते जब गुलाब तोड़ने गये और उससे पूछा तो उस टूटते गुलाब को खुद से ज्यादा औरों के टूटने का दर्द भी खूब था
यु तन्हा हुए हैं तेरे ही इंतजाऱ में अब किसी से ज्यादा मुलाकातों में बातें नहीं होती यु बावले हुये हैं तुझ में ही कि अब दिवारों को तेरे इंतज़ार कें किस्से कहानियों में सुना नें लगें हैं हम मिले जब तुम सुनना फुर्सत से कभी कि तेरे ना होने पर किस तरहा तन्हा लम्हा गुजरा है हमने