"दीवारों के कैदी हम"
इस तेज भागती दुनिया में
जमाने ऐसे भी आएंगे,
जब धरती पर इंसां से ज्यादा
हर तरफ मकां हीं नज़र आयेंगे!
ना धूप रहेगी हिस्से में
ना पेड़ों की छाँह रह जाएगी,
तब ईंट और पत्थरों के हीं
यहाँ फूल उगाएं जाएंगे!
तब चाँदनी रातों में फिर
चकोर को चाँद नज़र ना आएगा,
हसीं वादियां, खुला आस्माँ
ये सब किस्से बन जाएंगे!
आस्माँ छूती इमारतों के बीच
जीवन कहीं खो जाएगा,
जब रौशनदानों से झांकेगा बचपन
दीवारों के कैदी हम बन जाएंगे!
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