कल 'पहली बार' हुआ
दीदार-ए-यार यार हुआ
हर लम्हा करता हूँ जिससे प्यार
उसी हसीं से फ़िर से एक बार हुआ
सोचा था जब पहली बार देखूँगा
बहुत कुछ बोलूँगा
पर मैं तो चुप खड़ी 'दीवार' हुआ
हसरत-ए-दीदार में मर रहा था कब से
जो दीदार हुआ, 'मैं ज़िन्दा' यार हुआ
'ख़्वाहिश-ए-ज़न्नत' मैं अब क्या रखूँ
मैं तो एक पल में ही 'आफ़ताब' हुआ
हूर-ए-अदन सी हसीन है वो
मैं स्याह अँधेरी रात, वो महताब हुआ
अभी तलक, वो झलक, वो मुस्कान
मेरी आँखों में, ज़ेहन में, कुछ यूँ कायम है
मेरा दिल 'आईना-ए-हुस्न-ए-यार' हुआ
उनके 'रुख़-ए-रौशन' से नक़ाब कुछ यूँ हटा
नाशाद-ओ-नकारा 'सागा' भी गुलज़ार हुआ
ख़ुदा को देखा हो, जैसे किसी मलंग ने
उस पल 'मैं मलंग', 'ख़ुदा मेरा यार' हुआ
- साकेत गर्ग 'सागा'
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