मर्ज-ए-इश्क मुझको जकड़े हुए.....दर्द ये ना मिटने वाले...।
धड़कने मेरी यकायक तेज होने लगी...लगा लौट आए है जाने वाले...।।
इत्तेफ़ाक़ से वो ही मेरे सामने आ गए....।
मुसलसल देख मुस्कुराने लगे वो....एक अरसे तक मुझको रुलाने वाले..।।
धड़कने मेरी मचलने लगी,दिल तड़प रहा,दर्द रोने लगे....।
आए फ़िर वो दिन याद.....साथ बिताने वाले....।।
मै करती क्या??उनसे कहती क्या??मानो लब सिले से थे..।
उभरे ज़ख्मों ने कहाँ...सुनो ये वही है तुम्हें तन्हा छोड़ जाने वाले..।।
यूँ ही ना भूलना कितनी रातें रो कर बिताई "ज़ोया" तुमने...।
तब ना पोंछ सके ये आँसू.. ए-दिल ज़रा पूछो तो तब कहाँ थे ये चाहने वाले।।
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