बात मेरी मानिए इश्क न कीजिए
दिखते नहीं क्या आपको हाल हमारे-
"कुछ पर्दा न रहे इन निगाहों पर तेरी।
की दाग़ कुछ दिखते है, कुछ दिखते ही नही।"-
सब लोगों को अच्छा समझना
छोड़ दो ,
लोग अंदर से वैसे नहीं होते
जैसे बाहर से दिखते है-
लफ्जों की,
दहलीज पर......
तुम......
क्या लिखते हो.....??
जितनी भी,
तारीफ की जाए.....
कम है,
उससे कहीं ज्यादा....,
तुम दिखते हो।-
"कुछ बुझी सी रहती है
आँखें तुम्हारी आजकल।
लगता है वो आस पास
अब दिखते नहीं है।"-
तुम मेरे साथी नहीं हो, क्या,
साथ देते नहीं, परेशान हो गये क्या..!-
कहते हैं करार उन्हें है,
पर बेकरार से दिखते हैं।
देख कर मेरी आंखे भीगी ,
कुछ बेज़ार से लगते हैं।
है कोई नहीं मेरा उनके सिवा
जाने क्यों स्वीकार नहीं करते।
अंदाज उन्हें है प्यार का मेरे,
फिर क्यूं इम्तहान सा लेते हैं
हर एक खुशी देकर जैसे
कोई अहसान सा कर देते हैं
प्यार उन्हें भी हमसे है
जाने क्यों स्वीकार नहीं करते।-
" न रोज़ दिखते हो, न एक पल को हैरान करते हो
बड़े अदब से आजकल, तुम हमें परेशान करते हो !"-
मत पूछना मेरी शख्सियत के बारे में,
हम जैसे दिखते हैं वैसे ही लिखते हैं….!-