तिरा इश्क़ अबोध बच्चे सा,
इज़हार करते ही वो घबराता था!
तिरा इश्क़ आँखों के काजल सा,
इकरार करते ही वो शर्माता था!
तिरा इश्क़ आइने का काँच सा,
एतवार करते ही वो भरमाता था!
तिरा इश्क़ ताश के खेल सा,
जाहिर करते ही वो हारता था!
तिरा इश्क़ दीऐ की बाती सा दिilip
इंतजार करते ही वो जलता था!
-