घर से निकलते ही
घूरती है कई जोड़ी आंखे
दबोचने को तैयार कई जोड़ी बाँहे
लगता है जैसे हूँ दरिंदो की नगरी में
कौन अपना कौन पराया नहीं कोई पहचान
ना जाने कौन खाल में छुपा बैठा है भेड़िया
करने को शिकार तैयार
घर बाहर कहीं नहीं महफूज़
ये कौन सा समाज है
है कौन सी सभ्यता जो
बेटियों का कर रहा ये हाल
बेटी को बना के देवी
बनाते हवस का शिकार
जाएं तो जायें कहाँ
अब तू ही बता दे भगवान
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