हमसे
न जाने कैसी आंखे दी है ख़ुदा ने इन दरिंदों को,
देखा न जिस्म औरत का,बच्चों का बन जाते हैवान है ये,
नोच के तो पहले ही रख देते है उसकी आत्मा को,
फिर न जाने क्यों उसको जिंदा जलाते है,
इस अंधे कानून के आगे व्यर्थ है शोक मनाना इस जघन्य अपराध का,
ज़ुर्म मरता नहीं बस इंसान मर जाता है,
ये मौत की सजा भी कुछ नही है इनके लिए,
इन्हें बेटी दे कर देखो ये खुद ब ख़ुद मर जायेंगे,
जब वो पूछेगी उनसे..अपने धरती पर होने का कारण,
वो खुद ही दिन प्रतिदिन शर्म से घुट घुट कर मर जायेंगे...!
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