QUOTES ON #दंगे

#दंगे quotes

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19 DEC 2019 AT 20:36

कर्फ्यू भी जरूरी है , बातचीत में,
दंगें भड़क न जाये, डर लगता है..

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13 OCT 2020 AT 9:28

नफरत की हवाएं आज तेज हैं
तिरंगे से क्यों सबको परहेज हैं

समेटकर रख दो तुम इन धर्म के झंडों को
क्यों नहीं समझते राजनीति के हथकंडों को

मोहब्बत मरी नहीं उसे ढूंढो जिंदा हैं
हुकूमत का उसपर डाला हुआ फंदा हैं

तुम्हें अँधेरी गुफा में बैठा रखा हैं
नाम उसका मेरा मजहब रखा हैं

तुम्हारी सोचने की रोशनी छीन ली हैं
कल दंगों में तुमने अपनो की ही जान ली हैं

क्या हासिल हुआ उस मौत के मंजर में
तेरे जैसा ही खून लगा था तेरे खंजर में

क्यों अपने खून से सींचते हो हुकूमत को
हो एकजुट बदल डालो देश की सूरत को

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18 MAR 2018 AT 12:00

धर्म की डोर सियासत की पतंग
रंगो का शोर भाई-भाई में जंग ।

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24 MAR 2019 AT 3:20

इशारों की कीमत भी ज़रा समझा देना मुझे।
ये दंगे कराकर भी दुनिया बसाने की काबिलियत रखते हैं।

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18 JUL 2017 AT 11:39

शैतान की फ़ितरत को हूबहू खेंचता हूं
मुखौटा पहन मज़हब का,लहू बेंचता हूं।।

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9 JUL 2017 AT 0:55

सच कोने में है दुबका, दरारों से झांक रहा है
झूठ मदमस्त हो चौराहे पे नंगा नाच रहा है

उजालों ने शिकायत की है रात के क़ुसूर की
ग़ज़ब ये है के गुनाहों को अंधेरा जांच रहा है

देख के हालात -ए- मुल्क़ भी जूझ रहा है वो
आज लोहे से टकराता है जो खुद कांच रहा है

शरीफों के मोहल्ले कल से जश्न का माहौल है
लगता है फिर कोई मज़हबी क़िताब बांच रहा है

शहर के शहर ख़ाक हो चुके अब भी सुकूं नहीं
कोई है जो बारूद के ढेर पे जला आंच रहा है

चार रोज़ की ज़िन्दगी को जलाने वाले जाहिलों
तेरे हाकिमों की मौत का दिन भी पांच रहा है।।

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4 MAR 2020 AT 13:40

एक तिनका ऊँगली में चुभ जाने से रो पड़े थे तुम
पूरा का पूरा खंज़र अंतड़ियों में कैसे घुसा देते हो

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19 DEC 2019 AT 21:38

हर शख़्स लगता है मुझे दोस्त अपना
हर मकान मुझे अपना ही घर लगता है।

धुआँ बहुत है आज कमरे में मेरे
जल रहा है फिर से तेरा शहर लगता है।

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13 JUL 2017 AT 22:09

ख़ामोश लोगों का इक शहर देखा है
भीड़ में भी सुनसान मंज़र देखा है

हैवान का डर नहीं लगता अब मुझे
कुछ रोज़ मैंने इंसानी कहर देखा है

बेइंतहा नफ़रत, नापाक इरादे लिए
रूह तक फैलता इक जहर देखा है

महज़ कौम के नाम गले काट दे जो
बाज़ार में मुफ़्त है, वो खंज़र देखा है

जिसे दरीचों के लुत्फ़ का शौक है
उस शख्श को फेंकते पत्थर देखा है

बहोत तड़पती हैं राख होके रूहें
मैंने लाशों के गले लग कर देखा है

मेरा ज़मीर अब चिल्ला के रोता है
हां मैंने झांक के अपने अंदर देखा है।।

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रात भर शहर धुआँ धुआं जलते रहे,
घर कुछ तेरे उजड़े , कुछ मेरे ।

मानवता गहरी नींद में होगी शायद!

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