मोहब्बत थी मुझे तुमसे कभी, भुलाया नहीं मैंने तुमको कभी
कुछ मजबूरियां थी, कुछ अरमान थे मेरे
बिछड़ा भी था मैं तुमसे कुछ पल के लिए कभी
हाँ मैं खुदगर्ज था, था आशावादी मैं पहले कभी
सारा भरम टूट गया जब ठोकर खाया हमने किसीसे अभी
सच्ची मोहब्बत क्या होती है मुझको सिखाया था तुमने पेहले कभी
कितनी मोहब्बत थी तुम्हे हमसे हम न समझ पाये थे कभी
तुम्हारे दिल के किसी कोने में मैं अपनी जगह ढूंढता हूँ
सोचता हूँ क्या वही प्यार तुमसे मुझे मिल पायेगा कभी
या मेरे दिल के अरमान यूँही दिल मैं दफ़न होजायेगा कही।
(माफ़ी के इंतज़ार में)
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