ज़िन्दगी की इस भूलभूलैया में
मैं ही खो गया था कहीं..,
"ख़ुदा" ने तो मेरी तक़दीर का नक्शा
मेरे हाथ में पहले ही बना दिया था...,
लकीरें सब सही थी...
बस यह जो बीच बाली टेढ़ी सी रेखा थी ना
इसपे मुड़ने की बजाय मैं सीधा ही निकल गया,
जबतक बापस मुड़ता..नीचे से आती एक रेखा ने
उसे काट दिया था, जिसे मैंने पहले अनदेखा कर दिया था..,
बस .., एक बार जो रास्ता भटका,
...तो ताउम्र इन रेखाओं के जाल में ही उलझा रहा..,
वक़्त क्या..... हाथ से छुटा, के फिऱ दोबारा पकड़ ही नहीं पाया,
काश..., ज़िन्दगी के दो रास्ते होते,
जहाँ से चले थे वहाँ लौटकर वापस भी आ पाते...!
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