"तोहमत"
वो जुगनुओं की तरह रात में निकलता है,
उसे सहर का कभी कोई पता ना दे,
वो एक चाँद है लाखों सितारों में उस पर,
हसीन तोहमतें कोई लगा ना दे।
मेरे जज़्बात के नग़मात का तरन्नुम उससे,
मेरे दरिया-ए-दिल में होता तलातुम उससे,
वो एक ही शय है जिससे बिछड़ने का,
नसीब मुझको कभी भी ख़ुदा ना दे।
वो एक चाँद है लाखों सितारों में उस पर,
हसीन तोहमतें कोई लगा ना दे।
ये सुर्ख़ लब नहीं अशआर हैं सुख़नवर के,
पढ़ना चाहें जिसे आशिक़ शहर भर के,
उनपे शायरी लिखने का शौक़ मुझको भी,
बस यही बात उसे कोई बता ना दे।
वो एक चाँद है लाखों सितारों में उस पर,
हसीन तोहमतें कोई लगा ना दे।
-Rishi
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