वो गीत आज भी गलियों में सुहानी लगती है, तेरे बिना जीवन की हर घड़ियां अनजानी लगती है, याद है तुझे वो-२, जो तू बल खाती चलती थी पीली सरसों वाली खेत की मेढ़ पर, तू तो नहीं है अब-२, पर वो वादियां आज भी दीवानी लगती है।
पूछती है वो गालियां मुझसे, कहां है तेरे पे मरने वाली..?? पूछती है वो सड़के मुझसे, कहां है तेरे संग चलने वाली..?? पूछते हैं वो बाज़ार मुझसे, कहां है तेरे संग घूमने वाली..?? पूछते हैं वो बेकार चुटकले मुझसे, कहां है तेरे संग हंसने वाली..??
रोज चला जाता हूं उसकी profile पर! कभी कभी तो ऐसा लगता है जैसे खुदा का घर है वो । एक सुकून मिल जाता है जाना पहचाना सा एहसास जग उठता है फिर भी खुद को रोककर बाहर से ही सिर झुकाकर सजदा कर वापस आ जाता हूं । अब अगर मैं कहूँ कि इश्क़ करता हूं मैं तुमसे तो मेरी जान इसे इबादत समझना तुम ।।