तुम्हारे स्वागत् में...
तुम्हारे स्वागत् में बेशक फूल ना बिछाएं हमने,
पर शूलों की कँटीली सौगात भी कहाँ दी हमने ?
रास्ता तुम्हारा हमारे हिय तक खुला था हर तरह,
पर य़ार हमें गैर मान आवाज़ भी कहाँ दी तुमने?
आज भी हौले से मुस्कुराते हो पहले की तरह,
पर बताओं य़ार,बेरूखी हमसे क्यूं पाली तुमने ?
है महक बाक़ी बहुत ही हवाओं में अभी तलक यहाँ,
पर न जाने क्यूं चमन से बहुत दूरी बना ली तुमने ?
देखिए न चहचहाता है,गुलशन,हरदम रौनक लिए,
पर ना जाने क्यूं हर शय से किनारा ,कर लिया तुमने ।
देखिए न बगिया में बिखरे-फूल,खुश्बू ,रंगत सभी,
पर न जाने क्यूं काँटों से ही दामन,भर लिया तुमने ।
-Maheshkumar Sharma
22.10.2020
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