QUOTES ON #तिश्नगी

#तिश्नगी quotes

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ये तिश्नगी कैसी जिसे अज़ल तक मिटनी नहीं

अशुफ़्ता सा फिरना है क्या खिज़ा के आने तक ।

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5 MAR 2020 AT 19:06

शून्य
परिस्थिति पश्चात
नाद अनहद सी
आवाह्न मे
तेरी...

मैं
शून्य सी
समाहार पर पृथक्त्व
की उपमा
लिए...

जड़
रही सर्वथा
विक्षोभित पर तत्वपूर्ण
अंकुरित पल्लव
समान...


नीर
पृथक मत्स्य
की निस्तेजिता से
तड़पते रहे
अंतर्मन...!!

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18 FEB 2020 AT 17:33

किसी मंजिल की तलब अब नहीं रही मुझको ...
कर ली है तिश्नगी-ए-शौक़ से तौबा अब तो...
मुअज्ज़िज़ का कोई फरमान नही मंजूर अब मुझको....
जो बदले रास्ते तुमने तो अपना रास्ता देखो.....

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बच्चों वाली ज़िन्दगी,
हर किसी को पसंद है,
पर हर कोई यहाँ,
बच्चा नहीं होता।

सच्चाई भरी ज़िंदगी में,
प्रेम की तिश्नगी में,
तलाश लो तुम ही,
हर कोई यहाँ सच्चा नहीं होता।।

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15 JAN 2019 AT 19:25

तृप्त हो जाए फ़क़त बूंद से,कभी समुंदर भी कम पड़ जाए
"मुनीष" ये तिश्नगी-ए-इश्क़ , इसे कौन समझ पाए ।

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7 DEC 2021 AT 13:50

ज़िन्दगी है, बंदगी है, दिल्लगी है, इश्क़ में
दो दिलों के एक होने की ख़ुशी है इश्क़ में

साथ रहना झगड़ा करना दिल लगाना और फिर
दोस्ती कुछ और कुछ-कुछ आशिक़ी है इश्क़ में

सब इबादत भूल जाना आशिक़ों का काम है
दिल से मिलना फिर वफ़ा ही बंदगी है इश्क़ में

इक समंदर आँखों में है जिसमें दोनों डूबते
दिल किनारा होंठों की कुछ तिश्नगी है इश्क़ में

चलते-चलते बात करना बैठकर फिर बोलना
थोड़ी मस्ती थोड़ा रोना फिर हँसी है इश्क़ में

इनका मिलना देखो 'आरिफ़' दिल को भाता है बहुत
अपनी दुनिया ही तो इनकी ज़िन्दगी है इश्क़ में

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28 FEB 2020 AT 21:55

एक उम्र हुई दिल से उसे से रुखसत किए हुए...

रफ्तार खयालों की क्यों कम नहीं होती?

यू तो कई चेहरे नजर आते है चारो सू..

फिर तिश्नगी आँखो की क्यूं कम नही होती...

फितरत में दोनों के ही बहुत फर्क था मगर...

ताकत मे नदी सागर से कभी कम नही होती...

वो भूल चुके है हमे दिल को तो यकी है...

यादों पर उनकी क्यूँ पाबंदी नहीं होती।

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13 AUG 2020 AT 23:32

उन्हें मिल ही जाता है जो फ़रियाद करते हैं
इन्सान आज कहाँ किसी को याद करते हैं

मिटती ही नहीं यहाँ इनकी शिद्दत-ए-तिश्नगी
हर दिन एक नया मयख़ाना आबाद करते हैं

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21 SEP 2020 AT 0:50

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3 JUL 2019 AT 3:41

वो आकर मेरे करीब मुझमें घर कर गया,
वीरान बस्ती थी मैं मुझको शहर कर गया,

थमी हुई थी ज़िंदगी यूँ बेबस किनारे सी,
छूकर निगाहों से मुझको लहर कर गया,

तलाश जुगनुओं की जब भी बारहां रही,
अंधेरी रातों को मेरी वो दोपहर कर गया,

मेरी तिश्नगी करीब उनके आकर ठहर गई,
दबी हसरतों को कामिल बेसबर कर गया,

ख़्वाहिशों का सफर ऐ 'दीप' मुकर्रर करके
मेरी बेचैनियों को इश्क़ मयस्सर कर गया !

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