QUOTES ON #तिनका

#तिनका quotes

Trending | Latest
27 MAY 2020 AT 16:20

जब तलक उसका चेहरा नज़र नहीं आता,
दहर में मुझे कुछ अच्छा नज़र नहीं आता!
निगाह साहिलों की फ़िक्र में रहती है मगर,
डूबने वालों को तिनका नज़र नहीं आता
कश्ती डूब जाए ब-दरिया कोई गम नही,
तुम बिन जिंदगी का यूँ क़रार नहीं आता!

-



कभी-कभी सामने पहाड़ भी
आ जाये तब भी तनिक भय
नहीं लगता.............
जितना कष्ट
एक छोटा सा तिनका
दे देता हैं.........
क्यूं......?

क्यूंकि उसका कोई
अस्तित्व नहीं होता
कोई वजूद़ नहीं होता
ना ठिकाना होता, कि
वह पहाड़ की तरह
एक जगह स्थित रह सकें

वायु के वेग में चलायमान
रहता सदैव, जब चुभ जाता हैं
फिर उथल-पुथल कर देता है
सब-कुछ और फिर .......
अनिष्ठ होना तय कर‌ देता हैं !

-


6 OCT 2018 AT 17:58

माना कि में तिनका हूँ आपके जीवन मे
न मेरी कोई वजूद है ना ही में हूँ कोई खाश
बहूत है ऐसे जो है खास आपके लिए।
माना कि में तिनका हूँ तो क्या वजूद है मेरा,
उड़ उड़ के हवा का रुख तो बताता हूँ।

माना कि में तिनका हूँ।

-


11 MAR 2020 AT 11:33

# "तिनकों से निर्मित नीड़ ही
उसका वास है,
हर परिस्थिति में वो खुद को
समेटता है,
चाहे तेज़ धूप हो या घोर वर्षा,
छत्र के स्थान पर स्वछंद
आकाश ही उसके पास है!
स्वयं क्षुधा पीड़ित होकर भी
भोजन त्याग देता है,
क्योंकि उस नन्हें जीव का
वह एकमात्र विश्वास है!
घण्टों परिश्रम करता है,
किंतु माथे पर शिकन तक नहीं,
आजीवन दूसरों के लिए
जीता है वो,
वो केंद्र है उस वृत्त का और
नीड़ ही उसका व्यास है!
आख़िर क्या है वो,
उसे यह तक पता नहीं,
उसे क्या पता वो उस नीड़ के
हर सदस्य की आस है..!"¥

-


17 FEB 2020 AT 18:04

तूफानों का क्या
वो तो होते ही हैं
उजाड़ने के लिए
बनो तो वो तिनका बनो
जो उजड़ कर भी जहाँ
पनाह लेते हैं
काम आते हैं
किसी का
बसेरा बनने के लिए ...!!
#अर्चना_सिंह

-


3 MAY 2018 AT 5:36

निकला सुबह मैं कि हर तिनका ख़्वाब का चुन आऊँ,
कभी गर शाम आ जाए, तो मैं भी घर को लौट आऊँ..

-


23 MAR 2020 AT 7:40

बूँद बनकर जो ठहर जाऊँ मैं कभी तुमपर
तुम सूखे तिनकों की तरह मुझको थाम लेना

-


20 MAR 2020 AT 17:19

अभी तो जिंदगी में बहोत कुछ होना बाकी है..!
अरे,सिर्फ माचिस से तिनका गिरा है..!
आग लगनी तो बाकी है..!

-


11 JAN 2021 AT 18:54

"मैं तिनका"
_________

(अनुशीर्षक)

-


13 AUG 2020 AT 12:24

बाहों में भर नील गगन को धरती को मापा करते हैं,
सरहद की ऊँची दीवारों को पंखों से लांघा करते हैं।

तूफ़ानों से लड़कर कभी गिरते कभी संभलते हैं,
हौसलों से भरते हैं उड़ान मंज़िल को पाकर रहते हैं।

आसमां से जुड़कर भी इंसानों की बस्ती में रहते हैं,
थोड़े नादान हैं परिंदे तिनकों से ख़्वाब ये बुनते हैं।।

-