सजदा उस प्यार का फिर क्या करना... के हो मगरूर जो मोतबर (एतबार के काबिल )ना हो। क्यो करना ईश्क का इजहार उस सितमगर से... जो बुला के गैर को महफिल सजाया करता हो। क्यों ताल्लुक का ये बोझ उठाए फिरना.. कदम-कदम पे जहाँ दिल जलाना पडता हो।
खालिश एक खलिश सी अब भी मेरे दिल में है क्यू मुझसे दूर हो कर भी तू अब भी मेरे दिल में है बात बस इतनी सी है, अब तू इससे अंजान है, और मेरे अरमान तुझसे अब भी है क्यू एक खलिश सी अब भी मेरे दिल में है क्या कुछ ताल्लुक तेरे मेरे बीच अब भी है
मेरी रूह में समाए ना होते, तो भूल जाते तुम्हे। इतना करीब आए ना होते, तो भूल जाते तुम्हे। ये कहते हुए कि मेरा, ताल्लुक़ नही तुमसे कोई। तुम्हारी आँख मे आँसू आए ना होते, तो भूल जाते तुम्हे।