सदियों से जागी हुयी ख़ामोश रात हूँ
हमक़दम साथ में चलते रहकर भी मैं
चाँद तारों का एक आधा अधूरा साथ हूँ
समन्दर की अथाह गहरायी नापती हुयी
फिर भी जन्मों की मैं भटकती प्यास हूँ
भाव बंधन में मैं जकड़ी हुयी कविता हूँ
अर्थ की उन्मुक्त उड़ान लेती ज़ज़्बात हूँ
समव्यथा क्या कहूँ मैं ऐ मेरे प्रियतम सुनो
खुद समझ लो न ,तुम्हारा ही तो हालात हूँ
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