भले तुम पर कोई उंगली उठाये, चाहे फैलाये अफवाह सी,
मुझे किसी की परवाह नहीं, तुम हो ही पवित्र पंचकन्या सी!
भले छली हो तुम इंद्र से, चाहे रही प्रेम अभिशप्त शिला सी,
होगा मिलन जब सदियों बाद, हो लोगी पवित्र अहिल्या सी!
होंगे कितने तेरे शरीर के मालिक, चाहे तेरा अपमान हुआ,
पर तू ही होगी मेरी अर्द्धांगिनी, ह्रदय स्वामिनी द्रौपदी सी!
भले ही भूल से संसर्ग हुआ, चाहे मजबूरी से नियोग किया,
पर तुम हो आदर्श जीवनसंगिनी, तुम शीलवती कुंती सी!
भले चाहते तुमको बहुतेरे हो, चाहे कोई ना तेरी बात मानी,
अंतर्मन से तुमने मुझे स्वीकारा, दिल दूरदर्शिता तारा सी!
भले सर्वश्रेष्ठ से प्रणय किया, चाहे सलाह तेरी अनदेखी हुई,
उपरांत सब के मुझे वरण किया, तुम साथ मेरे मंदोदरी सी!
तन का नही है अस्तित्व प्रेम में, ना दिमाग से कुछ होता है,
अहसास की है प्रेमकहानी, मन से, मन सी और मन की सी! _राज सोनी
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