अरे! ये क्या,
तुम भी रोने लगीं,
क्यों? क्या हुआ तुम्हें?
क्या तुम भी करना चाहती हो?
मेरी माँ सी मोहब्बत
किसी खास इंसान से?
या खुद के लिए चाहती हो
मेरे पापा जैसा प्रेमी?
जो अनवरत तुमसे प्यार करे,
सुख-दुःख, सावन-पतझड़ सब में?
या इन कहानियों में तुम भी देखती हो
अपने भी माँ-बाबा का प्यार?
या फिर डरती हो आने वाली समय
में पीड़ा के ऐसे अनचाहे वार से,
जो झकझोर के रख देतीं हैं जीवन को?
खैर, जो भी हो,
पर तुम रोया मत करो!
मुझे अच्छे नहीं लगते
बिल्कुल भी तुम्हारे
फूल से चेहरे पर ये बहते आँसू!
फूलों पर जंचती हैं तो बस ओस की बूंदें,
गहरी बारिश तहस-नहस कर देती हैं,
इन फूलों का सौंदर्य, इनकी खुशबू!
चलो, अब जल्दी से हटा फेंको,
इस अनचाही धार को अपने रुख से!
चलो, ज़रा मुस्कुरा भी दो अब..!
तुम्हारे खिलते चेहरे पर ये आँसू
नहीं, बस मुस्कान जँचते है जाना!
ठीक वैसे ही फबती है ये हँसी,
तुमपर जैसे कि चाँद पर शब..!🖤
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