ना जाने तेरा साहब कैसा है मसजिद भीतर मुल्ला पुकारै, क्या साहब तेरा बहिरा है? चिउँटी के पग नेवर बाजे, सो भी साहब सुनता है पंडित होय के आसन मारै, लंबी माला जपता है अंतर तेरे कपट कतरनी, सो भी साहब लखता है
आप यह तर्क नहीं बघाड़ सकते - यदि ईश्वर नहीं, तो संसार को बनाता कौन है ? क्या हर एक चीज़ के लिए बनानेवाला बहुत ज़रूरी है ? यदि है, तो ईश्वर को बनानेवाला कौन है ? यदि वह स्वयं ही जन्मा है, तो वही बात प्रकृति के बारे में क्यों नहीं मान लेते ?