QUOTES ON #तबस्सुम

#तबस्सुम quotes

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4 DEC 2020 AT 11:15

एक जुस्तजू लेकर हम उनकी ओर मुखातिब हो गए,
लबों की तबस्सुम खोकर,रूखसार की लाली ले आए।।

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2 JUN 2020 AT 9:15

तबस्सुम तेरे होठों से ना खोने दें....,
ये इश्क़ एकतरफ़ा है,इसे होने दे..!!

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22 AUG 2020 AT 0:01

अब मुझे किसी बात का ख़सारा न रहा
उन पर वो इख़्तियार अब हमारा न रहा

किसी और की हो गई है यूँ मसर्रत उनकी
कि हमारी तबस्सुम का कोई सहारा न रहा

उन्हें महजबीं समझ निकला चाँद को लाने
मेरी कहकशाँ-ए-इश्क़ में कोई तारा न रहा

इतने दिन में जान ही लिए असरार उनके
ख़ुश-आमदीद उस दिल में गुज़ारा न रहा

कौन से शिर्क में शरीक हो गया 'आरिफ़'
बज़्म-ए-याराँ में एक दोस्त बेचारा न रहा

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वो मुखड़े से खिलती है,
अदा से फ़ना कर देती है।
आरजु है तबस्सुम का,
हर मर्तबा बयाँ कर देती है।।

काँटो के बीच वो ठहरी है,
छूने से पहले दर्द जना कर देती है।
तू ठहरा है नादान सा 'धर्मेंद्र'
वो तुझे छूने से मना कर देती है।।

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8 AUG 2020 AT 14:44

गुनाहों में मशग़ूल होकर ज़मीर भूल गया
इन्सान इश्क़ में है बहुत अमीर, भूल गया

एक तबस्सुम से बना सकता है हम-नफ़स
ख़ुद चलकर नहीं आएगी वो हीर भूल गया

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26 AUG 2019 AT 17:48

बिखर रही है तबस्सुम की शोखियाँ उनके चेहरे पर,
आज कत्ल करने फैसला करके वो घर से निकले हैं !

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29 JUN 2021 AT 15:16

मैं हुस्न-ए-तबस्सुम की आस लिए बैठा हूँ
हर ख़्वाब इस तरह अब पास लिए बैठा हूँ

अब कौन सी मोहब्बत बेचैन करेगी मुझको
मैं जिस्म में सभी की इक प्यास लिए बैठा हूँ

तारीफ़ अब वफ़ा की शायद ही करूँगा उससे
मैं इश्क़ को शुरू से कुछ ख़ास लिए बैठा हूँ

पैग़ाम इक मोहब्बत का रोज़ मिला है मुझको
हर ख़त में इक नया ही इतिहास लिए बैठा हूँ

हर दिन उसे पढ़ा है पढ़ कर ही हुआ हूँ 'आरिफ़'
उस पर ही अपना दिल मैं ख़ल्लास लिए बैठा हूँ

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29 JUN 2020 AT 14:03

🙏🙏 अल्फ़ाज़ के पत्थर नहीं फेंके 🙏🙏

कब लोगों ने अल्फ़ाज़ के पत्थर नहीं फेंके
वो ख़त भी मगर मैंने जला कर नहीं फेंके

ठहरे हुए पानी ने इशारा तो किया था
कुछ सोच के खुद मैंने ही पत्थर नहीं फेंके

इक तंज़ है कलियों का तबस्सुम भी मगर क्यों
मैंने तो कभी फूल मसल कर नहीं फेंके

वैसे तो इरादा नहीं तोबा शिकनी का
लेकिन अभी टूटे हुए साग़र नहीं फेंके

क्या बात है उसने मेरी तस्वीर के टुकड़े
घर में ही छुपा रक्खे हैं बाहर नहीं फेंके

दरवाज़ों के शीशे न बदलवाइए नज़मी
लोगों ने अभी हाथ से पत्थर नहीं फेंके
-अखतर नजमी-

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8 JAN 2018 AT 14:04

किसी की शक्ल देखने से ही मोहब्बत हो जाए
ये दिल इतना भी नाजुक नही
किसी की तबस्सुम देख कर पिघले ना जाए
ये दिल इतना भी पत्थर नही

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11 NOV 2020 AT 11:13

मरासिम नहीं हैं मोहब्बत नहीं है
दिलों में किसी के मुरव्वत नहीं है

दिलों को दुखाना है दस्तूर लेकिन
तबस्सुम की कोई हिफ़ाज़त नहीं है

मुदर्रिस कहे तो सुनेंगे ख़ुशी से
गुनाहों की फिर भी अदालत नहीं है

मयस्सर रहो तुम अगर है मोहब्बत
ज़रा भी हटे फिर शिकायत नहीं है

हसीनों से कह दो अभी दिल है ख़ाली
किसी और की अब ज़रूरत नहीं है

जो 'आरिफ़' लिखे तो न पढ़ना किसी को
किसी लफ़्ज़ में अब नज़ाकत नहीं है

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