मेरी लाडो,तू छन-छन करती आ जा तू मेरे तप्त हृदय को सुकून पहुँचा जा! कैसी बेबस सी हो रही हूँ ... सबको त्राहि-त्राहि करते देख रही हूँ चल क्षमा कर दे,पुत्री इस प्राणी जगत को! मैं माँ हूँ,नहीं देख सकती इन्हें बिलखते हुए तू अपनी माँ से मिलने आ जा ! कुम्हलाई माँ के गले लग जा महल बनाते हैं मेरी छाती पर ये वो तो मैं सह लेती हूँ,माँ हूँ न... तो मैं अपनी संतानों को आश्रय देती हूँ पर पागल ये मानव नहीं समझते हैं कि ये अपनी हरियाली को तहस-नहस कर फिर कैसे बरखा को याद करते हैं? 😢
बड़े संघर्षों के बाद खिलते हैं, तप्त रेगिस्तान में.. न कोई छाव, न कोई स्नेह, न कोई अपना, जीवन की दुरूह तलाश, के बीच, सम्भावनाएं तलाशना ओर, उन्हें पुष्पित पल्लवित करना.. ही जीवन है..!!
तप्त धरा के तन मन पर देखो हमको मोती बिखराना है। विश्वासों के दीप जलाकर अंधकार को दूर भगाना है। इस धरती से उस अम्बर तक देखो अब इस विश्व पटल पर- मानव धर्म निभाने को समरसता का पाठ पढ़ाना है।
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