प्रेम.. नफ़रत... दया.. करुणा.. बेदना... हमारे ह्रदय में इनकी प्रविष्टि हमारी दृष्टि के द्वारा ही होती है.. हमारा ह्रदय दृष्टि के हिसाब से एहसासों को बाँटता है,
हम किस बस्तु व्यक्ति को किस नज़र से देखते हैं.. हमारा ह्रदय उसके अनुसार अपने अंदर उसका एक प्रतिविम्ब सा बना लेता है... औऱ वो प्रतिविम्ब ही हमारे सुख दुःख का कारण बन जाता है,
अज़ीब बात है ना... जो हमें जितना दुर्लभः लगता है वो उतना ही अधिक प्रिय औऱ मूल्यवान लगता है... अब देखो ना... एक मक्खी या चींटी के मरने की अपेक्षा में एक हाथी का मरना हमें ज्यादा दुखदायी लगता है... बस दृष्टि ने आकार औऱ प्रकार के हिसाब से उनका मुल्यांकन तय कर लिया... ...पऱ जीवन तो दोनों में था ना,
जीवन में एक ही बात सीखी है के जब कोई भी चीज़ अपनी तय सीमा से अधिक हो जाती है तो हमारी दृष्टि उसका मुल्यांकन कम कर देती है.. इसलिए जीवन में अधिक की अपेक्षा क़भी ना करना...
अधिक ख़्वाब अधिक ख़्वाईशें... अधिक स्नेह.. अधिक प्रेम... अनदेखे से हो जाओगे.. अब ख़ुद ही सोचो ना.. हजारों तारों में हमारी दृष्टी चाँद को ही क्यूँ ढूंढ़ती है!!
Yuhi nhi kha karte hum kuch..... Ish jindgi k तजुर्बे ne bhoot kuch sikhaya hai! Badlna pda hmey bhi wqt k sath, Ekbar firr,bdi hi फुर्सत se khud ko bnaya hain!