बाबुल के घर से चली पिया के घर को, अरमानों की डोली कहारो के कंधे पर!
गुनगुनाते, बतियाने का जिम्मा, दुल्हन हो जाये ना उदास, कहार के कंधे पर!
रानी की तफरीह, राजा का सैर, तो भी तलवार लटकी रहती कहारो के कंधे पर!
महाकाल का भ्रमण, माँ दुर्गा का विसर्जन, ये भी जिम्मेदारी, कहारों के कंधे पर!
छिल जाए कंधे, थक जाए चाहे पांव,पर रुकने पर खैर नहीं, कहारों के कंधे पर!
कुछ इनाम का लालच, कुछ वारी की उम्मीद, चलता है घर, कहारों के कंधे पर!
लूट गई अगर डोली, भूले अगर रास्ते, बेवजह की शामत, कहारों के कंधे पर!
रस्मों की दुहाई, परम्परा के नाम पर, कब तक होगा शोषण, कहारों के कंधे पर!
सर्दी, गर्मी, बारिश, हो चाहे पतझड़, कब आएगा सावन, कहारों के कंधे पर!
_राज सोनी
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