QUOTES ON #ठेकेदार

#ठेकेदार quotes

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15 MAR 2019 AT 15:19

पुल से डर लगता है अब
नदी पर हो
रेलवे का हो
फ्लाईओवर हो
या पुलवामा
जोड़ने का पर्याय अब
उजाड़ने लगा है घर
कब गिर जाए
कहर बरपाए
यह तय नहीं
तय है तो यह कि
रेलवे का हो या फुटओवर
नदी का हो या पुलवामा
हर सूरत में जिम्मेदार है
ठेकेदार
चाहे वह वर्क्स डिपार्टमेंट का हो
राजनीति का
धर्म का
या आतंक का
गिरेगा पुल
उड़ेगा पुल
भरेगा आम
सहेगी औरत

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13 APR 2017 AT 18:42


हिन्दू का लड़का 'इश्क़' कर बैठा
मुस्लमान की लड़की 'प्यार' कर बैठी

धर्म के ठेकेदारों की 'दुकान' चलेगी अब

- साकेत गर्ग

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27 JUN 2017 AT 23:44

नफ़रत का ठेकेदार हूँ
सियासत का धँधा करता हूँ
जब 'भगवा' होता हूँ, 'टोपी' से चिढ़ता हूँ
जब 'हरा' होता हूँ, 'तिलक' से बिफरता हूँ
नफ़रत का ठेकेदार हूँ, सियासत का धँधा करता हूँ
'इन्सान' क्या होते हैं, नहीं दिखते मुझे
मैं तो बस 'जात-पात' को ही समझता हूँ
नफ़रत का ठेकेदार हूँ, सियासत का धँधा करता हूँ
जो कभी 'धर्म का सीज़न' ऑफ हो
मैं रंग और भाषा के नाम पर भिड़ता हूँ
पूर्व वालों को 'चिंकी' - 'चीनी'
दक्षिण वालों को 'लुंगी' कहता हूँ
उत्तर वालों को 'फ़सादी' - 'आतंकवादी'
पश्चिम वालों को 'गँवार' - 'कंजूस' कहता हूँ
नफ़रत का ठेकेदार हूँ, सियासत का धँधा करता हूँ
अपनी 'विचारधारा' वाले को समझदार
सामने वाले को 'चमचा' कहता हूँ
नफ़रत का ठेकेदार हूँ, सियासत का धँधा करता हूँ
इस देश में हर कोई, भड़कना चाहता है
मैं यहीं अपना मुनाफ़े वाला धँधा करता हूँ
हमेशा सरेआम करता हूँ, भाई को भाई से लड़ाता हूँ
नफ़रत का ठेकेदार हूँ, सियासत का धँधा करता हूँ
- साकेत गर्ग

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13 JUN 2017 AT 2:09

जो मुसलमाँ की बेटी ने 'रोज़ा' रखा
हिन्दू के बेटे ने भी 'व्रत' रख लिया

ख़ुदा ख़ुश, ईश्वर ख़ुश, 'धर्म के ठेकेदार' नाराज़ हैं

- साकेत गर्ग

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6 JUL 2017 AT 0:06


वो बेचारा मासूम, नादान था
अब उसे क्या पता था कि
धर्म के बाज़ारों में
इंसानियत बेचने वाला
'एक' इंसान था

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18 APR 2020 AT 14:20

चयन मित्रों का ही मेरे बस में था
शेष तो समाज के ठेकेदार तय करते है।

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गरीबों को मोहताज अन्न के दाने हो रहे
घर में चूहे जले ज़माने हो रहे ..
बूढ़ी मां पानी पी-पीकर सोती है
छुटकी बिटिया भूख में
बिलख-बिलख कर रोती है
देखो ठेकेदारों के बड़े मयखाने हो रहेे ..
गरीबों को मोहताज़ अन्न के दाने हो रहे ...

( पूरी कविता कैप्शन में ...)👇

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20 JUL 2017 AT 16:27

झूठ के ठेकेदार यहाँ सब,
सच की सौदेबाज़ी कौन करे,
झूठ बिकता कौड़ियो के भाव,
सच को खरीदने की हिम्मत कौन करे

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30 MAR 2020 AT 14:56

नफरत भरी दुनिया में हम सिर्फ सच्चाई लिखते हैं।
ना इश्क लिखते हैं ना बेवफाई लिखते हैं।
हर बार यह तूफान उजाड़ देती है मेरी कश्ती।
क्योंकि हम इसे मौत का सामान लिखते हैं।

ना जाती पर लिखता हूं ना धर्म पर लिखता हूं।
जब भी मिलता है मौका अपने वतन पर लिखता हूं।
जाकर कह दो इन ठेकेदारों से,
ना हिंदू लिखता हूं ना मुसलमान लिखता हूं।
जो करे देश से गद्दारी उसको गद्दार लिखता हूं।

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3 SEP 2021 AT 19:09

जिंदगी की हवाओं ने,
रुख क्या बदला,
उनकी जिंदगी के,
कुछ ठेकेदार बन गए।
खुद जिंदगी तो,
खुशहाल कर गए,
दूसरों की जिंदगी में,
जहर घोला और,
आग लगा कर चले गए।

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