अल्फ़ाज़ मेरे असरदार नहीं रहते
वहां अलग अंदाज़ ढाल लेती हूँ ।
खामोशी बयां कर देती हूँ मैं
दीदार करती हूँ पर कुछ नहीं कहती ।
आँखो को जुबाँ बना लेती हूँ मैं ,
जख्मों को नजरअंदाज नहीं करती ।
ख्वाबों से काम अब चला लेती हूँ मैं ,
जिंदा रहने ख़्वाहिश सांसो की नहीं करती ।
नशा अक्सर जख्मों का कर लेती हूँ ,
होश को कभी बेहोशी में ठुकराया नहीं करती ।
मायूसी से जब इस दिल को घेर लेती हूँ ,
यूं बेवजह खुद ही खुद पे मुस्कुराया नहीं करती ।
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