बयां ना कर सकूं इतनी महरूम नहीं पर जो कह नहीं पाते वो बात समझती हूं खामोश हूं बस इसलिए क्योंकि बिख़रे जज़्बात समझती हूं । मैं अक्सर गुम सी जाती हूं , ख़्यालों में इस कदर चलती रहूं तो मैं ही हूं ठहरूं, तो तुम हो जाती हूं ।
मुश्किलों से गुजर रहा है मंज़र पर मै हारा नहीं हूं तरसता रहता हूं तेरे लिए हर वक़्त पर मै बेचारा नहीं हूं मुश्किल है गुज़ारा ये ज़िन्दगी का तेरे बिन घूमता रहता हूं शामो सुबह अकेला कभी तुम्हारी तो कभी अपनी ही तलाश में पर मै आवारा नहीं हूं
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