ऐ मुसाफ़िर आज तू भी तनिक ठहर जा.. कुछ यादो के सफर से ख्वाबो के शहर में चलते हुए मुसाफ़िर आज इन बूंदों की चादर को ओढ़ कर तनिक बैठ जा , देख वह धूप की परछाई अब पीछे छूट गयी है तो इन बदलो के साये में तनिक ठहर जा कुछ पल को मंज़िल को भुला इन राहो को भी तो जी ले न ज़रा... मंज़िल दूर है अभी तो , ऐ मुसाफ़िर तू भी तनिक ठहर जा...