हमारे घर मे आग लगा के कहा जाओगे तुम। ये धुँआ तुम्हारे दिल मे जाएगा,क्या दिल को जवाब दे पाओगे तुम। हम तो फिर घर बना के अपने बच्चों को पाल लेगे.... क्या ये सच्चाई अपने बच्चों को बता पाओगे तुम।
मुझे कभी सर्दिया अच्छी न लगी, बचपन में हल्कू की कहानी से लेकर, झोपड़ी में कांपती जवानी तक ।
सर्दियों का आनन्द सिर्फ, सैलानियों को मिला है, जो बर्फ में मोटे कपड़े पहन, अठखेलियाँ करते हैं। या शायद, मैं, प्रेमी, वियोगी कवि या मुफ़्लस इंसान नही हूँ।
✍️✨झोपड़ी, भीख एवं भिखारी की अर्ज़✨✍️ (काल्पनिक) मित्रों......... टूटी झोपड़ी में रहकर मैंने, किसी का घर नहीं उजाड़ा। फिर क्यों? न जाने इस जमाने ने सब मेरा ही बिगाड़ा।
लोगों ने........... न मांगने पर भी जबरदस्ती चवन्नी फेंक खरी खोटी सुनाई। ऐसा करते देख उन बड़े नादानों पर मुझे बहुत तरस आई।
पता नहीं क्यों.......... मुझे बेवजह गालियाँ देकर मेरा अपमान किया पर, मैं शांत था। कलहों में हिस्सेदारी के शौकीन हम नहीं, हमें भाता एकांत था।
हे ईश्वर!........... हो सकता है मैंने जन्म लेकर गलत किया हो! इन बेचारों की हरकतें माफ करना। पापी तो मैं भी हूँ! बहुत यूँ शिकायतें करता हूंँ। इबादत है तुझसे! ठीक इंसाफ करना।