याद तो बस इतना है
के तू याद से जाती ही नहीं,
बस नजरअंदाज सा करता हूँ
क़भी ख़ुदको, क़भी तुझको,
पऱ तेरी टोह का मोहः भी
यह कैसा है...,
के सोचता हूँ, के कोई तुझसा मिले
मुझे तो कोई,
तेरी यह पहेलियाँ बुझे तो कोई,
अब देखो ना...,
कल रात ही सपने में आई थी तुम,
मंदबुद्धि मैं.., जानता हूँ के, तू है नहीँ पऱ,
जाने क्यों लगता है के...,
अपने आस-पास यहीँ-कहीँ, अभी-अभी तुझे देखा है
सच्ची..., मैंने कई बार, आधी रात में ही,
सुबह को देखा है..!
-