प्रेम ग्रंथ के पन्ने .......
कुछ खाली, कुछ भरे-भरे से
कुछ उभरे, कुछ दबे- दबे से
मैं यहाँ इस पन्ने पर धुंधली सी
तो तुम वहाँ उस पन्ने पर गहरे-गहरे से
प्रेम ग्रन्थ के पन्ने....
कुछ उभरे, कुछ दबे-दबे से ।।
कही सिसकती आहे, कही खुशियों के मेले से
कहि अंधेरे में लगते दिये, कहि धूप में निकले काले बादलों से
प्रेम ग्रंथ के पन्ने.....
कुछ उभरे, कुछ दबे - दबे से
साथ उनका जैसे हासिल हो पूरी दुनिया
बिन उनके जैसे पूरे उजड़े से,बस वीरानियाँ
कुछ ऐसे ही होते हैं,,,
ये प्रेम ग्रंथ के पन्ने......
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