मेरे मुंह में थोड़ी-सी ज़बान रहने दे,
आईना दिखाने को घर में सामान रहने दे।
मिली है मुद्दतों बाद ज़िन्दगी मुझे,
दो चार दिन और मेहमान रहने दे।
मन्ज़िले दूर हैं और कठिन रास्ते,
बरख़ुरदार को ज़रा परेशान रहने दे।
आई रोटी हाथ में अरसे बाद बमुश्किल,
उस गरीब को जरा हैरान रहने दे।
छीन लो चाहे मेरे पैरों तले से ज़मीन मेरी,
नई मन्ज़िलें पाने को दिल में तूफ़ान रहने दे।
नहीं हुँ मैं तुम्हारी महफ़िलों के मुताबिक़,
जैसा हुँ वैसे होने का मुझमें गुमान रहने दे।
"साफिर" को पहचानते नहीं ये मॉल वाले,
होती जहाँ बात दिलों की ऐसी एक दुकान रहने दे।
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