ज़ुनून का तेल डाल ,आग की लपटें उठा।
बन मशाल अपने दम पर ,तम को मिटा।
अपने भीतर की ,उस प्रसुप्त शक्ति को जगा।
बन चैतन्य ,आलस अकर्मठता को दूर भगा।
दबी हुई चिंगारी को ,धधकती हुई ज्वाला बना।
ला कुछ परिवर्तन तू भी ,एक नया इतिहास बना।
कर पल-पल का सदुपयोग ,फैला दो जहाँ में रोशनी।
सुकर्मों की ख़ुशबू से , बन जाये कोई अमर कहानी।
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