बेचती हूँ अपने जिस्म को महज रोटी के लिए।
सोती हूँ सैकड़ो के साथ घर चलाने के लिए।
न जाने क्यों ये दुनिया मुझे तवायफ़ बोलती है,
कभी कुछ भी तो नही किया हवस मिटाने के लिए।
ख़ुद की भूख मिटाने के लिए ज़माने को सुख दिया मैंने,
कभी नकाब नही पहना अपना सच छुपाने के लिए।
तुम क्या जानोगे मेरा दर्द, खून के आँसू रोती हूँ मैं भी,
कोई भी तो नही आता मुझे कभी चुप कराने के लिए।
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