कुछ किस्से, कुछ अनसुलझे ख्याल
उमड़ जाते हैं ,मन में कई सवाल
क्या सच मे,
बेफिजूल हरकतों से हंसेगा कोई
या कहेगा बस कि ,
ये पागलपंती अब नहीं सही
चल आजा आज छेड़े,
वहीं नगमे पुराने,
मित्रों से बात करने के दूढ़े ,हजार बहाने
दरकिनारे कर इस उम्र की संख्या को,
खुद में खुद को खोजना जायज है,
एक पल ,एक दिन के लिए नहीं,
अपने लिए जीना भी जायज है।
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