भ्रम कुछ पल का हो सकता है, जिंदगी भर का नहीं, तुम्हारी मुहब्बत पर यकीन हो सकता था, वादों पर नहीं; हम दो किनारे तो हो सकते थे, एक दरिया नहीं, हिचक ज़ाहिर करने में हो सकती थी, चहरे पर पढ़ने में नहीं...
#मैं और मेरी तन्हाई इंसान हूँ कोई भगवान नहीं मुझे भी होता है दर्द पर ज़ाहिर करती नहीं अगर दर्द ही दर्द अब रह गया है मेरे ज़िंदगी में तो बेशक़ ये दर्द ही रहे अब ज़िंदगी में मेरे रहती थी तन्हा जैसे मैं कभी अब फ़िर सोचा है मैं रहूँगी वैसे ही अभी