हक़ीक़त कहो या फ़साना कहो तुम
कभी तो मुझे भी दीवाना कहो तुम
तुम्हारे ख़यालों से बाहर न निकला
इसी टूटे दिल को घराना कहो तुम
मैं घुट घुट के जीता रहा हूँ अकेला
मोहब्बत का कोई तराना कहो तुम
जो तस्वीर दिल में बनी है तुम्हारी
अक़ीदत का उसको पैमाना कहो तुम
मशिय्यत है मुझको मिलो तुम ही आख़िर
मुझे चाहे फिर भी पुराना कहो तुम
मैं 'आरिफ़' हुआ हूँ पढ़ी जब मोहब्बत
अकेला कहो या ज़माना कहो तुम-
मेरे हाथ में तेरा हाथ रहे,
फ़िर चाहे ज़माना छूट जाए कोई ग़म नहीं।
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छोटी बच्चियों की सिसकियाँ देखते हैं
उनकी इज्ज़त लूटती उंगलियाँ देखते हैं
ज़ुल्म किसने किया सबको है इसकी ख़बर
फ़िर भी ज़ालिम जुर्म की निशानियाँ देखते हैं
चाहे नन्ही "ट्विंकल" हो या हो नन्ही "आसिफा"
ये ना लड़की, ना औरत, और ना बच्चियाँ देखते हैं
वहशीपन का इस कद्र अब ख़ुमार चढ़ा है इनको
ना ही किसी की इज्ज़त, ना ही परेशानियाँ देखते हैं
तिरा कुछ लेना-देना नहीं, तू दुनिया की चिंता छोड़
दूसरों की क्या, लोग बस अपनी ख़ुदगर्ज़ियाँ देखते हैं
कुछ तो ख़ुद भी अभी ढंग से बड़े हुए ही नहीं "आरिफ़"
फ़िर भी हम सब मिलकर उनकी ये नादानियाँ देखते हैं
इक बच्ची की आबरू को "कोरा काग़ज़" ही समझकर
जुर्म के हाथों से मिटती हम सिर्फ़ ख़ामोशियाँ देखते हैं-
2020
ना जानें कैसा ज़माना आ गया है।
अपनों को भी बेगाने बता गया है।-
मेरी ज़िन्दगी का कोई फ़साना नहीं
पसंद करता मुझे अब ज़माना नहीं
थोड़ी ख़ुद्दारी बचा कर रख 'आरिफ़'
झूठे दोस्त तू कभी अब बनाना नहीं-
ख़्वाहिश-ए-दिल और आस उसको पाने की
सिर्फ़ वही तो क़ातिल नहीं है इस ज़माने की
ख़िश्त-दर-ख़िश्त पहुँचा है इस दिल में इश्क़
कोशिश न करना दिल-ओ-दीवार गिराने की-
हम-नफ़स समझ लिया है ज़माने ने हमें
इन्हें क्या पता अब दयार-ए-इश्क़ अपना-
यूँही बारिश को बदनाम करता है ज़माना
में तो तेरे इश्क़ में भीगा हूँ-
जाने कैसे - कैसे लोग होते हैं जमाने में,
ख़ुद....!
ख़ुद को पहचान कर नहीं सकते,
और....!
कहते हैं क्या रखा है जमाने में।-
आजकल ज़माना जाली!
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चेहरा साफ़, दिल में दाग़ !!
मुँह पर आप, पीठ पीछे साँप !!-