गमलों में कांटे भी पाले देखे
ज़िन्दगी.. कुछ यूँ लोग संभाले देखे,
महंगे शीशों से मड़ा था जिन्हें
उन खिड़कियों पे.. पर्दे डाले देखे,
यूँ तो.. चाहने वाले कई थे मेरे
पऱ ज़रूरत पे.. दरवाज़ों पे ताले देखे,
मुझे हँसते-मुस्कुराते सभी देखा किये
किसने कहाँ.. मेरे हाथों के छाले देखे,
हम तो अंधेरों में.. सुकूँ से सो गये
जब हमनें दुसरों के घर में.. उजाले देखे।।
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