मैं जमीर हूँ तुम्हारा अभी सो रहा हूँ, गर बात इज्जत पे आए तो जगा देना। वो जो जलील करता है न तुमको हमेशा, मिटा दूँगा उसे उसको ये बता देना।। -ए.के.शुक्ला(अपना है!)
बरसने दे ये मेघ... बरसने दे ये बदरा.... तुम या तुम्हारी दुनिया न रोक सकेगी ये सैलाब... हमदर्दी के हजारों बांधों मे वह काबीलियत कहाँ.... बहाकर ले जा ये मायूसी के घरोंदे... उडा तू दे जा निराशा की ये फसलें.. डूबा दे ये कडवी यादें तू आब ए चश्म मे... तोड दे ये गिले-शिकवे की जमीर को चुभती बेडियां.. पर बचा लेना तू अपने वजूद को... जुदाई न हो तेरे जमीर की तुझसे... क्योंकि कयामत के बाद ही होता है नया आगाज... ये वसीयत तो सदियों से चली है.... शर्मसार हो जाएंगे ये बादल.. छुपा लेंगी अपना रुख ये बिजलियाँ... देखा न होगा किसीने ऐसा सैलाब उमड़ा जो हो बरबादी से आबादी तलक के सफर का चश्मदीद गवाह... बरसने दे ये मेघ... बरसने दे ये बदरा....