QUOTES ON #जमाने़_में

#जमाने़_में quotes

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क्या ढूढे़ हैं इस
जमाने में तु
अपनी भी कभी
थोड़ी रख, खबर!

निकल पड़ा
जिस खोज मे तु
उसके लिये थोड़ी
रख, सबर !!

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तू निराश है क्यों इस भीड़ के ज़माने में
वक़्त लगता है सभी का सही वक्त आने में।

थोड़ा मेहनत है अपने ही पसीनों को बहाने में
असली मज़ा तो यही है मंजिल को अपनी पाने में।

फ़ुरसत से रुकना एक दिन तुम अपने ठिकानों में
अभी तो बस चलना ही है इस रेत के तूफानों में।

अपनी आत्मा लगा दो तुम कर्म को निभाने में
यही सही बस वक्त है नही व्यर्थ करो गँवाने में।

इतरा रहे हैं लोग जो तुमको अभी अपनाने में
आएगा ऐसा वक्त भी तुम्हें सब लगेंगे मनाने में।

फड़फड़ायेगे कुछ लोग भी तुम्हें देखकर ज़माने में
उनके लिए न व्यर्थ करना ख़ुद को सही दिखाने में।

~ © साक्षी सांकृत्यायन




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28 FEB 2018 AT 16:46

सब कुछ समझते है ,
पर बोलने में डरते है ,

आजकल के ज़माने में ,
हम रिश्तों को अनमोल समझते है ।

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23 JAN 2019 AT 9:02

सब कुछ से
बहुत कुछ तक
का सफर ...
विश्वास हैं ।

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और भी थे,
जमाने में !!
जो ख़ुदा होने का,
दम भरते थे!!
तुम पहले नही हो,
और ना ही अंतिम,
ये दास्ताँ!!
बार बार ,
दोहराई जायेगी,
लेकिन
अंजाम हर बार,
सिफ़र होगा!!

*आजमा लो अपने अहंकार को

सिद्धार्थ मिश्र

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न कुछ रंग होता जमाने में यारों,
अगर इस जहां में वफायें न होती,

स्वतंत्र, क्या मैं करता अकेले यहां पर,
अगर आप सबकी दुवाएं न होती...!!

सिद्धार्थ मिश्र

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31 JUL 2019 AT 22:29

दोनों ही कूसूरवार है जानां,
इस ज़माने में ।
तुमने देर कर दी,
रौशनी लाने में ।
और हम मशगूल रहे,
दीये बनाने में ।।

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25 APR 2020 AT 12:46

गुलाबों   के  पंखुरियों  को  इतनी  दबाई  गई  पन्नो   से
रँग  उतरे   नही  अभी  ठीक  से  महक  छीन  ली    गई

नज़रे     मिलाने    की    बात   गांव    में    क्या     फैली
जुर्म किए नही अभी ठीक से और ज़िन्दगी छीन ली गई

इज़हार-ए-इश्क़ का सहारा  लबों  से  क्या  लिया  हमने
लबों-लबों   के   बीच   कम्बख़्त   ये जमाना   आ    गई

और  दिल  का पता भेज देता मैं चिट्ठी बंद  कर  उसको
गर    बीच    मे    बात   उसके   खसारे  की   ना   होती

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5 NOV 2020 AT 14:39

हम जमाने की खुशी और रंजो गम मे शरीक होते है
इसलिये हमारी खुशिओं मे सितारे भी शरीक होते है

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तेरे इश्क़ में ऐसी हालत हुई है,
दीवाना हमे लोग कहने लगे हैं..!

हदें पार सारी वफाओं की करके,
सितम नाख़ुदा के भी सहने लगे हैं..!

नहीं था मेरा वास्ता महफिलों से,
मगर अब ज़माने में रहने लगे हैं...!

तुम्ही सोचो ना दर्द की इन्तेहाँ है,
लहू अश्क़ बन कर के बहने लगे हैं..!

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