बहुत गर्मी पड़ रही है शहर में,कुछ इस तरह से हवा दीजिए, आईये जब छत पर तो, जुल्फों को अपने बिखरा दीजिए। उदास मत रहिए,यूं ही मुस्कुरा दीजिए, बात नहीं कर सकते हैं तो,कुछ इशारों- इशारों में ही बता दीजिए।
तलबग़ार थे हम छत के, जहाँ हसरतों की पंतग उड़ा सकें तलबग़ार थे हम ज़मीन के, जहाँ वजूद का परचम लहरा सकें ना छत मिल सकी, न ही ज़मीन नसीब हुई जिंदगी तू अधर में लटकी Middle Flat बन कर रह गयी
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