अच्छा सब कुछ आज़ कह दूं, जो बात ज़हन में आयी है। दब गया हूं तुम्हारे एहसानों से, कैसे छुटकारा पाऊं? कहीं खुद की नज़रों में ना गिर जाऊं, चाह कर भी कभी ना उठ पाऊँ। अब छुटकारा तो दे दो, कहीं एहसान फरामोश ना बन जाऊं।
देखो चुप रहने से बात बिगड जाती है तुम बात करते रहो, गर पडे कम बाते करने के लिये तो हम से झगडा करते रहो.... देखो एैसी खामोशी अब तुम्हारी सही नही जाती, तुम्हारी बेवजह की खामोशी सही नही जाती.... देखो कहो कुछ प्यारा या फिर हमे डा़ट दो, तुम अपने रसभरे अल्फाज अब तो हम से बाँट दो...