आओं बहन थोड़ी चुगली लगाते हैं,
दूसरों के घरों की कहानियां सुनाते हैं।
तुम अपनी सुनाना, मैं अपनी सुनाऊँगी,
छोटी छोटी बातों को बढ़ा चढ़ा कर बताऊँगी।
चलो पड़ोसी होने का फ़र्ज़ निभाते हैं,
भाभी जी के कान भर आते हैं।
चाय के नाम पर उनके घर जाते हैं,
थोड़ी हम ताक झांक कर आतें हैं।
हाय शर्मा जी की बेटी तो घर देर से आती है,
पता नहीं कहां कहां जाती हैं।
शुक्ला जी का बेटा भी कुछ कम नहीं,
महँगी गाड़ियों में घूमता हैं और
शौक भी बड़े वाहियात रखता है।
आओं हम ऐसा चक्कर चलाते हैं
इनकी कुछ अफ़वाह उड़ाते हैं,
चरित्र पर एक दाग लगाते है।
उनके सीधे सादे बच्चों को बदनाम कर आते हैं।
आओं बहन थोड़ी चुगली लगाते हैं,
भाई साहब को भी इनमें उलझाते हैं।
आओं बहन कपड़ो पर भी बातें बनाते हैं,
ट्रेंड ट्रेंड कर हाय हाय मचाते हैं।
चलो पड़ोसी होने का फ़र्ज़ निभाते हैं,
अच्छाइयों में भी खामियां निकालते हैं,
अपनी बातों के ताने कस सबका दिल दुखाते हैं।
आओं बहन थोड़ी चुगली लगाते हैं
दूसरों के घरों में ताक झांक कर नए किस्से बनाते हैं।।
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