//डायरी//
सिर्फ़ एक चीज़ थी उनकी हमारे पास
वो डायरी जो बंद थी अलमारी में बरसों से..
कुछ किस्से, यादें, कुछ अधूरे ख्वाब और
साथ बिताए पल भी कैद थे उसमें अरसों से
खोजा बहुत पर नहीं ढूँढ पाए हम अब की बार
शायद पुरानी किताबों के साथ रद्दी में बेच दिया उसे
हालांकी पुरानी हो गई थी वो पर पढ़ते ही जैसे
गुज़रे लम्हें भी जी लेते थे हम फ़ीर से
एक आवाज़ से थे अल्फाज़ उनके
जैसे पढ़ते ही बतियाने लगते थे हमसे
कहते थे के ये वो नहीं जो चंद चीजों तक सिमित रहे
ये तो इश्क़ है, बस हो जाता है दिल को दिल से
अब खुद से हम भी कहने लगे
संभालों इस नादान दिल को "निसर्गा" की
नाम सुनकर प्यार का लहरें तरसती है मिलने को साहिल से..— % &
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