किलकारियाँ बचपन की, तब चीख में बदल गयी। वेदना आहत हुआ, ज़ालिम कहकहों से ढह गयी।। ईश्वर की सुंदर कृति को, शैतानों ने किया दागदार। जीती जागती ज़िन्दगी, बन बेजान मूरत रह गयी।।
एक नारी की 'चीख' उस 'गधे' के समान ही है, जिसे वक़्त आने पर 'बाप' बना लिया जाता है। यूँ तो जगह-जगह, बात-बात में होता गुनाहग़ार, लेकिन इंसाफ़ में भी 'पाप' भुना लिया जाता है।।
चीख रही औरत की कोख़ ना करो मेरा अपमान जिसको रक्षक समझकर जन्म दिया ,वो क्यो नही करते नारी सम्मान कभी दंगों की भेट चढा़कर शरीर को युद्ध स्थल बनाया जाता है कभी अपने घरेलू हिंसा,दहेज प्रथा और कोठो पर सजाया जाता है
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