यह ज़िन्दगी खो अपने होश बैठी है
लेके बेबजह कितने अफ़सोस बैठी है,
ख़्वाइशों की पतंग को हवा तार-तार कर गयी
औऱ यह सब देके मुझे ही दोष बैठी है,
जाने किसके इंतजार में हैं यह ख़्वाबों के पाखरू
रात गुज़र गयी अभी भी पत्तों पे ओस बैठी है,
इस ठहरे पानी में कोई पत्थर मारे
के मेरी जिजीविषा बड़ी.. ख़ामोश बैठी है..!
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