अभिमान करूँ स्वयं पर
या करूँ उस पर
उसका रूप
मेरे प्रेम से
अधिक प्रिय है मुझे
सूरज की चमक हूँ मैं
तो चाँद की चाँदनी है वो
क्रोध की गर्मी हूँ मैं
शांति की ठंड है वो
दर्द का भण्डार हूँ मैं
तो गीत की ध्वनि है वो
उसकी छुअन भर से
मेरा रोम-रोम
प्रज्वलित हो उठता है
अभिमान करूँ स्वयं पर
या करूँ उस पर
उसका प्रेम
मेरे प्रेम से
अधिक प्रिय है मुझे
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